वांछित मन्त्र चुनें

वा॒चस्पत॑ये पवस्व॒ वृष्णो॑ऽअ॒ꣳशुभ्यां॒ गभ॑स्तिपूतः। दे॒वो दे॒वेभ्यः॑ पवस्व॒ येषां॑ भा॒गोऽसि॑ ॥१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वा॒चः। पत॑ये। प॒व॒स्व॒। वृष्णः॑। अ॒ꣳशुभ्या॒मित्य॒ꣳशुऽभ्या॑म्। गभ॑स्तिपूत॒ इति॒ गभ॑स्तिऽपूतः॒। दे॒वः। दे॒वेभ्यः॑। प॒व॒स्व॒। येषा॑म्। भा॒गः। असि॑ ॥१॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

इस सप्तम अध्याय के प्रथम मन्त्र में सृष्टि के निमित्त बाहर और भीतर के व्यवहार का उपदेश है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य तू (वाचः) वाणी के (पतये) पालन हारे ईश्वर के लिये (पवस्व) पवित्र हो, (वृष्णः) बलवान् पुरुष के (अंशुभ्याम्) भुजाओं के समान बाहर-भीतर वा व्यवहार होने के लिये जैसे (गभस्तिपूतः) सूर्य्य की किरणों से पदार्थ पवित्र जैसे होते हैं, वैसे शास्त्रों से (देवः) दिव्य-गुण युक्त विद्वान् होकर (येषाम्) जिन विद्वानों की (भागः) सेवन करने के योग्य है, उन (देवेभ्यः) देवों के लिये (पवस्व) पवित्र हो ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। सब जीवों को योग्य है कि वेदों की रक्षा करनेवाले नित्य पवित्र परमात्मा को जान और विद्वानों के सङ्ग से विद्यादि उत्तम गुणों में निष्णात होकर सत्यवाणी को बोलनेवाले हों ॥१॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

तस्य प्रथममन्त्रे सृष्टिनिमित्तो बाह्याभ्यन्तरव्यवहार उपदिश्यते ॥

अन्वय:

(वाचः) वाण्याः (पतये) पालकेश्वराय (पवस्व) पवित्रो भव (वृष्णः) वीर्य्यवतः (अंशुभ्याम्) बाहुभ्यामिव (गभस्तिपूतः) गभस्तिभिः किरणैः पूत इव। गभस्तय इति रश्मिनामसु पठितम्। (निघं०१.५) (देवः) विद्वान् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (पवस्व) शुद्धो भव (येषाम्) विदुषाम् (भागः) भजनीयः (असि) ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.१.१.८-११) व्याख्यातः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य ! त्वं वाचस्पतये पवस्व, वृष्णोंऽशुभ्यामिव बाह्याभ्यन्तरव्यवहाराय गभस्तिपूत इव देवो भूत्वा येषां विदुषां भागोऽसि, तेभ्यो देवेभ्यः पवस्व ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। सर्वेषां जीवानां योग्यतास्ति वेदपतिं सततं पूतं परमेश्वरं विज्ञाय विदुषां सङ्गमेन विद्यादिगुणेषु सुस्नाताः सत्यवागनुष्ठातारः स्युरिति ॥१॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सर्व माणसांनी वेदाचे रक्षण करणाऱ्या नित्य, पवित्र परमेश्वराला जाणावे आणि विद्वानांच्या संगतीत राहून उत्तम विद्या प्राप्त करावी, सत्यवचनी बनावे.